Tuesday, November 13, 2018

छठ महापर्व दुनिया का सर्वश्रेष्ठ व्रत, संकल्प ऐसा जो टूटता नहीं

छठ किसी व्रत या त्योहार का नाम नहीं है। यह हमारी सृष्टि का प्रतिबिंब है। दैनिक भास्कर ने दुनियाभर में सूर्य उपासना के विधानों का अध्ययन किया तो यह साफतौर पर नजर आया कि छठ दुनिया का सर्वश्रेष्ठ पावन व्रत है। महापर्व के तीसरे दिन मंगलवार को श्रद्धालुओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। बुधवार सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत पूरा होगा।

तपस्या ऐसी कि जिसमें मांगने की जरूरत नहीं। व्रत करने के पीछे न कहीं लोभ है और न लालच। मन में बस एक संकल्प होता है और इस संकल्प में होती है निष्ठा और पूरी ईमानदारी। छठ की तिथि का ही कमाल है कि हवाएं रुख बदल लेती हैं, मन-मस्तिष्क में सौहार्द के भाव उत्पन्न होने लगते हैं। घर-परिवार, गांव-शहर और मोहल्लों में मधुर आस्था का एहसास होने लगता है। सोच-विचार-आचार-व्यवहार में पूरा बदलाव ... छठ के दौरान ऐसा लगता है जैसे हम वो हैं ही नहीं पहले वाले। आइए छठ पर बदलाव शिद्दत से महसूस करें। कोशिश करें कि हमारी जिंदगी में कोई नई शुरुआत हो जाए।

समर्पण : न मंदिर की जरूरत न मंत्र की

छठ व्रत में न कोई मंदिर की जरूरत न मंत्र की, न जाप की न ही किसी कर्मकांड की। जरूरत है तो बस पूर्ण समर्पण की। यह एकमात्र व्रत है जिसमें 36 घंटे निर्जला रहना पड़ता है। जहां छठ वही धाम और हर व्रत करने वाली महिला छठी मईया।

प्रकृति: महापर्व में सबसे बड़ा महत्व स्वच्छता का
महापर्व में किसी चीज का महत्व है तो वह है-स्वच्छता का। पर्यावरण का, प्रकृति का। इसीलिए इस व्रत में हर कुछ वही इस्तेमाल होता है जो प्रकृति के द्वारा छठ के समय उपलब्ध होता है।

दाता सिर्फ एक: भिक्षा मांगकर भी करने का विधान

छठ इकलौती पूजा है, जिसे भिक्षा मांगकर भी करने का विधान है। व्रत करने वाले के पास कुछ भी नहीं है तो भी वह सिर्फ जल से अर्घ्य देकर व्रत को संपन्न कर सकता है।

आस्था की तपस्या; श्रद्धा का शृंगार, छठ के 4 दिन जिसमें 36 घंटे लगातार निर्जला

36 घंटे तक निर्जला व्रत जैसा उदाहरण दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। निर्जला एकादशी, तीज, जितिया व करवा चौथ में भी 24 घंटे का ही उपवास रखा जाता है। रमजान में मुसलमान भाई भी रोजा रखते हैं लेकिन सूर्यास्त के बाद इफ्तार करते हैं। यहूदी धर्म के पवित्र दिन 'योम किप्पुर' पर अनुयायी दिनभर उपवास करते हैं। ईसाइयों के चालीस दिनों के व्रत लेन्ट (ईसा मसीह 40 दिनों तक रेगिस्तान में भटकते रहे) के बाद 'पवित्र गुरुवार' को धर्मानुयायी दिनभर अनाज ग्रहण नहीं करते। सेंट्रल अमेरिका व अफ्रीका की कई जनजातीय और आदिम सभ्यताओं (रारामुरी व अन्य एलगेन्कियन जनजाति) में नाराज कुलदेवता की मन्नत में उपवास का जिक्र है। जैन धर्म में 'महापर्व पर्युषण' के दौरान आत्मा व शरीर की शुद्धता के लिए अन्नत्याग का प्रावधान है। लेकिन छठ पर्व में चार दिनों का व्रत मागधी संस्कृति की अनूठी मिसाल है।

व्रत कठिन, पर विधान आसान

छठ व्रत में 100 से अधिक सामग्रियों की जरूरत होती है, लेकिन निर्धन व्यक्ति को भी कोई कमी नहीं पड़ती। व्रत करने वाले के पास कुछ भी नहीं है तो भी वह सिर्फ जल से अर्घ्य देकर व्रत को संपन्न कर सकता है। हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार योगदान देने के लिए तत्पर रहता है। कुछ नहीं है तो वह झाडू लेकर सड़क व घाट की सफाई में जुट जाता है।

जीवनदायिनी तत्वों की पूजा

छठ का मुख्य प्रसाद 'ठेकुआ' है जो गेहूं के आटे और गुड़ के मिश्रण से बनता है। यह भी प्रकृति की देन है। यह अर्पण भाव ही स्वीकार है कि प्रकृति में जो कुछ है, सब सर्वशक्तिमान सूर्य के कारण है। सूर्य को समर्पित है। आराधना, जीवन की नहीं, जीवनदायनी तत्वों का पोषण करने वाले की है। यह 'मैं' का नकार और सृष्टि व स्रष्टा से एकाकार है।

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