Wednesday, July 3, 2019

राहुल गांधी आख़िर इस्तीफ़े पर क्यों अड़े हैं- नज़रिया

कांग्रेस के वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों की बैठक थी. बैठक की शुरुआत फिर से राहुल गांधी से इस्तीफ़ा वापस लेने की बात से हुई लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने न इस्तीफ़ा वापस लिया और न ही अपने तेवर बदले.

वह जमकर अपने पार्टी के लोगों पर बरसे और बोले-अगर ज़मीनी हक़ीक़त समझी होती और कार्यकर्ताओं के मन की बात जानी होती, तो कांग्रेस का ये हाल नहीं होता और न ही मैं इस्तीफ़ा देता.

राहुल गांधी ने 25 मई को लोकसभा चुनाव के परिणाम की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था.

तब से लेकर अब तक राहुल गांधी से बड़े नेता से लेकर कार्यकर्ता तक इस्तीफ़ा वापस लेने की गुज़ारिश कर रहे हैं.

क्यों दिया राहुल गांधी ने इस्तीफ़ा
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ़ 52 सीटें मिली हैं. आलम यह रहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी पारंपरिक सीट अमेठी भी नहीं बचा सके. इस हार को राहुल गांधी पचा नहीं पाए.

उन्हें उम्मीद थी कि उनकी देखा-देखी कांग्रेस के बाक़ी वरिष्ठ नेता भी इस्तीफ़ा दे देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

दरअसल, राहुल गांधी चाहते थे कि पार्टी के दिग्गज नेता हार की ज़िम्मेदारी लें और संगठन के अपने पदों से इस्तीफ़ा दें.

उन्होंने बार-बार इशारा किया कि पार्टी के संगठन में आमूलचूल परिवर्तन की ज़रूरत है. ये परिवर्तन वो अपने इस्तीफ़े से पहले करना चाहते हैं.

उनकी शिकायत है कि पार्टी के दिग्गज नेताओं के सारे समीकरणों को कांग्रेस ने माना और उनके चुने हुए उम्मीदवारों को पार्टी ने टिकट दिया लेकिन लोकसभा के चुनाव में उनके उम्मीदवार कुछ ख़ास नहीं कर पाए. नतीजा नील बटे सन्नाटा रहा.

लेकिन पार्टी नेता अपने पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

राहुल गांधी का मानना है कि पार्टी के टिकट बँटवारे के पीछे परिवारवाद और अहम की लड़ाई ज़्यादा रही. राहुल ने यह बात मुख्यमंत्री की बैठक में खुलकर कही.

महाराष्ट्र कांग्रेस ने 10 सीटों पर जीत का दावा किया था लेकिन उन्हें मात्र एक सीट मिली और वो भी उस उम्मीदवार से मिली जो ऐन मौक़े पर शिव सेना छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुआ था.

ऐसी ही कहानी बाक़ी राज्यों की भी है. राजस्थान में जहां पर राज्य सरकार कांग्रेस की है, वहां पर कांग्रेस को लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिली. राहुल गांधी ऐसे सारे आंकड़ों पर जमकर बरसे.

हाल ही में यूथ कांग्रेस के नेताओं की बैठक में राहुल गांधी ने कहा था कि उन्हें इस बात का दुख है कि किसी मुख्यमंत्री, महासचिव ने इस्तीफ़ा नहीं दिया.

इसके बाद पार्टी में इस्तीफ़े की झड़ी लग गई. संगठन के दूसरी क़तार के नेताओं ने सामूहिक इस्तीफ़े की पेशकश की.

इन इस्तीफ़ों के पीछे की एक वजह सालों से कांग्रेस की रीति-नीति संचालित करने वाले वरिष्ठ दिग्गजों पर पद छोड़ने का दबाव बनाना है.

मुख्यमंत्री बैठक के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस्तीफ़े की भी बात चली.

राहुल गांधी एक तरफ़ संगठन में बदलाव चाहते हैं ताकि नई टीम के साथ आने वाले चुनावों की लड़ाई कर सकें.

वहीं दूसरी तरफ़ वह अध्यक्ष का कार्यभार से ज़्यादा आम आदमी के नेता बनना चाहते हैं.

वो चाहते हैं कि जब-जब देश में लोगों के मुद्दे उठाए जाएं तब-तब राहुल गांधी वहां मौजूद हों. यानी देश में जहां समस्या हो वहां राहुल गांधी दिखें.

कांग्रेस को इस बात का एहसास है कि ज़मीनी स्तर पर पार्टी बेहद कमज़ोर हो गई है और इसी चीज़ को राहुल गांधी ठीक करना चाहते हैं.

उनका मानना है अब ये तभी ठीक होगा जब नए लोग नए जज़्बे के साथ काम शुरू करेंगे.

लेकिन गांधी परिवार के नज़दीकी राहुल गांधी को अध्यक्ष पद से दूर करना नहीं चाहते हैं.

उनका मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो कहीं वही स्थिति ना आ जाए जो सीताराम केसरी के समय पर हुई थी.

हालांकि सोनिया गांधी ने राहुल के इस्तीफ़े पर खुल कर नहीं बोला लेकिन माना जा रहा है कि सीताराम प्रकरण का ख़ौफ़ तो है.

राहुल फ़िलहाल वापसी का रास्ता नहीं देख रहे तो अध्यक्ष पद के लिए ऐसा व्यक्ति खोजा जा रहा है जो ज़रूरत पड़ने पर गांधी परिवार के किसी सदस्य के लिए अपने पद को छोड़ने के लिए तैयार हो जाए.

इसके लिए कई लोगों के नाम पर चर्चा चल रही है लेकिन सूत्रों के मुताबिक़ सुशील कुमार शिंदे का नाम सबसे ज़्यादा लिया जा रहा है.

इसकी एक वजह ये भी है कि महाराष्ट्र में चुनाव आने वाले हैं और शिंदे महाराष्ट्र से हैं.

कांग्रेस को उम्मीद है कि इस चुनाव में शिंदे का प्रभाव असर डालेगा.

हालांकि चर्चा में और भी नाम हैं. पिछले 19 साल से कांग्रेस अध्यक्ष पद गांधी परिवार की झोली में रहा है.

लेकिन परिवारवाद का आरोप झेलने वाले राहुल गांधी अब कांग्रेस अध्यक्ष पद के बजाय जन जन के नेता के रूप में अपनी छवि चमकाना चाहते हैं.

हालांकि इसके लिए कांग्रेस और राहुल गांधी को जम कर काम करना होगा और साथ ही बीजेपी के वार झेलने की कला भी सीखनी होगी.

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